क्या ये जिन्दगी है जो हम जी रहे हैं,
क्या इन तकलीफों को हम जिन्दगी कह सकते हैं,
क्या अवसर्प्रस्त लोगो को हम जिन्दा कह सकते हैं,
क्या जिन्दगी का अर्थ सिर्फ़ सांसे लेना भर है,
किसी की नासर्गिक प्रतिभा को दबा देना क्या जीवन है,
जीवन का तो सच्चा मतलब प्यार है।
निस्वार्थ प्यार,
अति स्नेह पूर्वक प्यार,
वहीइन्सान जीवित है जो इस परिभाषा को जन गया है।
आओ दोस्तों "पंकज" के साथ मिलो,
नया जीवन हम सजायेंगे।
प्यार का संसार हम बानाएंगे।
संदीप कुमार कर्ण (पंकज)