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Hi, My self Sandeep Kumar from Ludhiana. I am a Tax Adviser & Accountant in a CA Firm (B.A. & Doing M.A. (Hindi). My hobby to write Poems Lyrics and Gazals. Some time I am also writting short Stories & my Safarnama. any body can join here who wana good point of life taking from my Life. I am inviting some more Critics who will me some advise to improve my Blog. Kind for information it is a Private blog. No body can claim here for their Poetry or Critaive work other than me. All things which are posted in this blog are mine own creations. No body can use these post for their personaly use without the permission of me (Sandeep Kumar). If any body takes any things from that without permission that should be ofense of My Rights. I am free to take Legal against them who theft my ideas or Poems. but any body who wana that can say me through a mail or call me at +91-98141-59141: +91-93567-87928: +91-95697-11306. All the best for all My readers and followers. God Bless You.... Your Sandeep Kumar (Pankaj)

SANDEEP KUMAR (PANKAJ) FROM LUDHIANA.

Monday, April 12, 2010

सुधार की जरुरत

[सुधार की जरुरत]

शब्दों का ये तालमेल,
बड़ा अजब है खेल.
नियम कठिन पर रोचक,
हिंदी पाठक होता बोधक.
कवि की कविता छूटी,
कलम की नोक भी टूटी.
करूँ यतन सफल बनू,
तीर सा लेखन मैं करूँ.
महानुभावों का साथ हो,
शीश ईश का हाथ हो.
एक दिन "पंकज" सुधरेगा.
कीच से कमल सा निखरेगा.

*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना.

Saturday, April 10, 2010

हज़रत राम जी आओ

"हज़रत राम जी आओ"
समय की पुकार, सुन हे ! करतार.
धर्म में अधर्म का बोलबाला,
कर रहा सकल संसार.
कहें सब मानव हैं एक से,
फिर अधर्म का क्यों विस्तार?
हिन्दू को मारे मुस्लिम,
मुस्लिम को हिन्दू  मारे कटार.
सदभावना लोप हुई मन से,
नफरत का करते रहें प्रचार.
भंवर बड़ा ही गहरा है,
मानवता फंसी बीच मझधार.
हज़रत, राम को फिर आना है,
तभी गिरेगी ये नफरती दीवार.
पंडित मुल्ला दोनों गले मिले,
"पंकज" सुखमय बने ये संसार.

*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना (पंजाब)

Friday, March 26, 2010

छंद

छंद
छंद की रचना, छंद है रसना,
छंद लिखे विद्वान् है.
रसिक छंद से मन हर्षाये.
बिहारी भी रसखान है.
छंद से अर्पित, छंद समर्पित.
तुलसी बने महान है.
छंद मनमोहक, छंद है बोधक.
छंद सूर का विधान है.
अधिक छंद से काव्य बने.
अंत बने ग्रन्थ समान है.
छंद में विचरित "पंकज".
कीच से सना इन्सान है.

*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना

Thursday, March 25, 2010

दिल कि आस

दिल कि आस
दिल मे जगा कर आस प्यार की.
कोई छोड गया है राहों में.
जाते ही कोई आ गया फिर से.
इन प्यासी बाहों में.
जज्बातो का तुफ़ान रहा उफ़नता.
खिल के पिस गया दिल कि आहों में.
ज्यादा खून गिरा जिस मां का.
बचा क्या इन कि साहों में.
झरना बहे मोहब्बत का झर-झर.
बेहयाई बसे हुये हैं निगाहों में.
एतबार करें किस किस पे "पंकज".
दिल को कोई तोड गया सरे राहों में.

संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना

Saturday, March 20, 2010

अपनी लिपि अपनी भाषा

अपनी लिपि अपनी भाषा
हिंदी के महान और आदरणीय सपूतों ;
मत निकालो अर्थी हिंदी की.
दर्शन का प्रयोग करते हैं पुरातन;
बात करते संस्कारों की.
अहम् का टकराव हो रहा है;
एक एक को दूसरों में कमियां ही दिखाई दी.
लिपि अपनी कितनी पौराणिक भूले;
रोमन, अरबी कितनी प्रसंगिकी.
महक अपने देश की जा रही विदेश तक;
अभिमान करे की हम हैं महान वारिसी.
जीवन पर्यंत जो हम किये अब विचारे;
अपनी लिपि और भाषा को उभारने प्रयत्न की?
भावनाए होती रहे आहत नहीं दुःख इसका;
बस अपनी अपनी बोलती रहे सदा थोथी.
कंटक कारी समय नजदीक आता जा रहा;
अपनी लिपि पे आये  संकट की बात की?
"पंकज" समझाए की विचार बाँटिये;
मत भूलिए आप भी संतान और देन हैं इसी भाषा की.

*संदीप कुमार (पंकज)
*लुधियाना.

Monday, March 15, 2010

जीवन की डगर

जीवन की डगर
बहुत कठिन डगर है जीवन.
सुन्दर इसका उपवन.
कहीं धुल, कहीं उबाल.
समर तपस्या सा पावन.
विस्मित हो संसार निहारे.
कटिल झाड़ सा ये मधुवन.
क्षुब्द सजल निर्झर निश्चल.
कृत रत बोझिल है ये मन.
विधा के ज्ञान अज्ञान बने.
मृदुता आलोप हुआ जन-जन.
निडरता है छुपी डर भीतर.
कांप रहा हर एक बदन.
अचल से मन का नीर बहे.
सोच रहा क्यों मिला ये जीवन?
सास्वत सत्य पड़ा खतरे में.
मृत्यु रहा पुकार ये मन.
रिक्त हुआ जल से "पंकज".
करे पुकारे,"कहाँ हो भगवन?"

*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना
+९१-९८१४१-५९१४१
+९१-९३५६७-८७९२८

Thursday, March 11, 2010

भगत सिंह की याद

(भगत सिंह की याद)
घोर विपत्ति में उठा हथियार,
चला भगत करने संहार.
बाजुओं के जोर शोर से,
आजादी की जंग है चोर से.
चुरा लिया जिसने भारत का चैन,
सान्द्रस के घर कर दिए वैन.
अंतिम साँस तक वन्दे मातरम,
लड़ा वीर कह वन्दे मातरम.
इन्कलाब का दे कर नारा,
हिंद जगाया उसने सारा.
"पंकज" सलाम करे तुझे भगत,
आज तुझ पर नाज़ करे जगत.


* संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना (पंजाब)

Saturday, March 6, 2010

संवेदना

"संवेदना"
सूक्ष्म सी चुभन,
मन में अगन.
जगे तन में लगन,
हो कार्य में मन.
डग लगे कठिन.
तब जगे संवेदन.
"पंकज" रहे मगन.
गात लगे ईश भवन.

*संदीप कुमार (पंकज)
* लुधियाना

Friday, February 19, 2010

ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ

ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ

ਹੁਣ ਪਿਯਾ ਤਰਫਦਾ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.
ਕਰਾਂ ਕਿਦਾਂ ਬਿਯਾਂ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.
ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਸਾਰ, ਰਿਹਾ ਠਾਠਾਂ ਮਾਰਦਾ.
ਭੁਲਿਯਾ ਹਰ ਕਾਰ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.
ਇੱਕਲਾ ਕੋਈ ਇੰਸਾਨ, ਜਹਾਂ ਤੇ ਰਾਜ ਨਾ ਕਰੇ.
ਲੱਗੇ ਸਬ ਮੈਨੂੰ ਅੰਜਾਨ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.
ਕ਼ਲਮ ਦੇ ਅਥਰੂ ਵੀ, ਹੁਣ ਰੋਕਿਯਾਂ ਨਾ ਰੁੱਕਣ.
ਹੋਣ ਕਾਗਜ ਕਾਲੇ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.
"ਪੰਕਜ" ਖੜਾ ਮਜਬੂਰ, ਤੱਕਦਾ ਰਿਹਾ ਟੁਟਦੇ ਨੂੰ.
ਕਿਸ ਦਾ ਹੈ ਕਸੂਰ, ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਤੇਰੇ ਬਾਝੋਂ.


ਸੰਦੀਪ ਕੁਮਾਰ (ਪੰਕਜ)
ਲੁਧਿਆਣਾ (ਪੰਜਾਬ)

"विवशता समय की"

"विवशता समय की"

जहाँ देखता हूँ,
अनजाना सा डर,
टूट जाती है नींद,
आधी रात में.
ये घुटी घुटी सांस,
दम घोंटू माहौल,
ये चीखते से लोग,
हर बात में.
विषय में लिप्त नेता,
वासना के हेतु नारी,
समय की विवशता,
बैठी हर गात में.
काम नहीं बने,
बिन मुट्ठी गर्म किये,
जनता पड़ी बेसुध,
अधिकारी की लात में.
ईश्वर कहाँ है "पंकज",
देख नज़ारा आर्यव्रत का,
हंस रही है मानवता,
रख हाथ को हाथ में.


संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना.

Wednesday, February 10, 2010

आपका साथ

"आपका साथ"
कितना खुश हूँ पा कर साथ
थाम कर रख लिया आपका हाथ

दिल की धड़कन अब गा रही
मीठे सुर में नगमें सुना रही

जतन के बाद खुश खुशहाल
मिला ली हैं दिल के साथ ताल
फूल से बिखरे हुए हैं जीवन में
आपका मुस्काना उमंग भरे तन मन में

प्यार आपके ने कितना खुश कर दिया
सुने जीवन को प्यारी खुशियों से भर दिया.

बाग़ में ज्यूँ खिले गेंदे के बीच गुलाब
यूँ लगे आप हमें हर वक़्त लाजवाब

अनायास ही आपसे बातें होने लगीं
धड़का जिया और नींदें खोने लगीं

महकता हुआ सा आप खुश्महल हो
बीच नदिया खिले आप वो कमल हो

"
पंकज" का दिल मजबूर प्यार हाथों
आओ मिल के निभाएं वचन सातों

* संदीप कुमार (पंकज)
*लुधियाना (पंजाब)
+91-98141-59141 and +91-95697-11306

Wednesday, February 3, 2010

{मानवता की ओर}

{मानवता की ओर}

समस्त शक्ति धार कर, ईश को पुकार कर.
उठा कदम, बढ़ा कदम, तुं शत्रु का संहार कर.
उठे जो डग, गिरे वो पग, बलिष्ठ बन के वार कर.
अचल धरा, वत्सल धरा, तुं भू को भार न्यार कर.
पौरुष बन, ईशजीत बन, कमल की भांति सार कर.
वेद पढ़, कुरान पढ़, अमल का जामा धार कर.
तुं है पवन, तुं छू गगन, भीतरी शक्ति का संचार कर.
ज़हर की काट, तुं है अकाट, आधार भर को तार कर.
बढे जो तुं, थामे हर रु, विश्वाश मन पुकार कर.
विशेष हो, जग से शेष हो, ज़र्रे को तुं पहाड़ कर.
विषमय जो मन, करता जतन, नर शक्ति को संवार कर.
मिटे जो द्वेष, कटे कलेश, तुं मानवता से प्यार कर.
सन्देश दे, प्यारा देश दे, भारत को सर्व धार कर.
कटे कठिन, आये सुखिन, वक़्त की कसौटी पार कर.
"पंकज" बना, कीच से सना, स्वच्छ पुष्प आर कर.
बीच विषमता के, हे मानव! तुं प्यार का प्रचार कर.

* संदीप कुमार कर्ण (पंकज)
* लुधियाना (पंजाब)
* +९१-९८१४१-५९१४१ और +९१-९५६९७-११३०६.

Friday, January 29, 2010

तुमसा नहीं कोई


{तुमसा नहीं कोई}
जहाँ में तुमसा नहीं कोई,
आकाश में तुम हो खोई।
रहगुजर रहा कोई बनके,
किसके खाबों में हो खोई?
होंठों पर सिर्फ नाम तेरा,
याद में सारी रात तूं रोई।
जिस्म से जिस्म टकरा गया,
फासला रहा नहीं बीच कोई।
लव रहें सदा खामोश,
धड़कन की जुबान भी सोई।
जिस कदर हैं इंतजार तेरा,
क्या रहा तुझे भी वोही?
बीता हुआ कल ना बनो,
सूर्य की पहली किरण होई।
तारीफ नहीं ये हकीकत हैं,
"पंकज" के जज्बात तोही।
तुम सांसों में ऐसे बसे,
इष्ट बने ज्यों कोई।


संदीप कुमार (पंकज)

Thursday, January 21, 2010

"गीत"

"गीत"
.कितना आसान हैं, दिल का लगाना
बिना बात मुश्किल बड़ा मुस्काना
लबों की शिकायत बढीं जा रहीं हो
धड़कन से भी काहे नज़रें चुराना
बिना......

.आवाज दिया किसने प्यार को
हम मिटे नहीं दीदार--यार को
अधर से मिलाकर अधर खिले हैं
आदत नहीं लगाना गले हार को
बहुत खूब आता हैं, ये दामन छुड़ाना
बिना.........

.काँटों में बीता हुआ मेरा जीवन
पत्थर की राहों सा चुभता मेरा मन
धुल को धुल समझ भूला दूं
अगर सुलझे उत्तर खिले मेरा तन मन
आपका अंदाज़ ऐसा की पलकें झूकाना
बिना......

.बड़ा हैरान हुआ देख "पंकज"।
कैसे हुआ ये सोचे देख "पंकज"।
तनिक बात पे कुछ बिगड़ने ना पाए
कितना घर ख्याल देखें है "पंकज"।
दिलों को दिलों के है नजदीक लाना
बिना बात.......



संदीप कुमार (पंकज)
लुधिआना

Thursday, January 14, 2010

Khichdi

{खिचड़ी}

किस्सा बहुत पुराना हैं. एक बार की बात हैंनाथूराम नाम का एक आदमी एक बार अपने ससुराल गयापहुँचने पर रात हो चुके होने के कारण सासु माँ परेशान हो गयी थीं, जमाई राजा आये हैं तिस पर रात गहरा गयी हैं, अब क्या बनाऊ जो झटपट तैयार हो जायेसासु माँ ने जल्दी से खिचड़ी बनने को रख दी बिच में आलू भी डाल दिएजल्दी ही सासु माँ ने परोस दियानाथूराम को खिचड़ी बहुत पसंद आईउसने सासु माँ से पूछा, "माँ ये क्या था जो इतना स्वादिष्ट था, पहली बार इसे खाया हैं इसे क्या कहते हैं।" सासु माँ बोली, "इसे खिचड़ी कहते हैं।" "पर आपकी बेटी ने तो कभी नहीं बनाया इसे", नाथू बोलासासु माँ बोली, "इस बार बना देगी बस उसे कहना की खिचड़ी बना दो।" रात को नाथू राम सो गया
सुबह को उठा मुंह हाथ धो कर घर वापस जाने को विदा हुआ तो उसने फिर से अपनी सास से पूछ लिया की रात में क्या बना थामाँ ने फिर से कहा की रात में खिचड़ी बनी थीनाथूराम थोडा सा भुल्लकर किस्म का व्यक्ति थावो सोचा की घर दूर हैं तो तब तक मैं भूल जाऊंगाइस लिए उसने रटते हुए जाने का फैसला कियानाथूराम जा रहा हैं ये कहता हुआ। "खिचड़ी...खिचड़ी.....खिचड़ी......खिचड़ी....खिचड़ी.....खिचड़ी।"
कुछ दूर जाकर उसे ठोकर लगी नाथू गिर पड़ाउठा और फिर से बोलते हुए चला जाने लगापर अब उसके उच्चारण में फर्क गया थाअब वो खिचड़ी की जगह खाचाड़ी खाचाड़ी बोल रहा थाथोड़ी दूर पर साधुओं की एक टोली जा रही थीनाथू अपने धुन में खाचाड़ी..... खाचाड़ी करता जा रहा थासाधुओं ने उसे पकड़ लिया और लगे मार पिट करनेवो बोले की सुबह सुबह हमारे सामने गाली बक रहा हैंनाथूराम बोला, "आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं।" साधुओं ने कहा, "तुम कहो उड़ चिड़ी... उड़ चिड़ी।"
नाथू उड़ चिड़ी ....... उड़ चिड़ी करता जा रहा थाएक जगह बहेलिये पंछियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाए हुए थेउसे उड़ चिड़ी बोलते सु उसे पकड़ लिया और खूब धुलाई की, " हम यहाँ सुबह से जाल बिछाए बैठे हैं और ये ऐसी बात बोल रहा हैं।" नाथू बोला," आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं?" "तुम कहो आते जाओ और फंसते जाओ," बहेलिये बोले
नाथू आते जाओ फंसते जाओ ....... आते जाओ फंसते जाओ, बोलता जा रहा थारात हो गयी थीएक जगह कुछ चोर चोरी के इरादे से निकले थेउनके नजदीक जाकर भी नाथू यही बोल रहा था की आते जाओ फंसते जाओचोरों ने उसे पकड़ लिया और फिर से नाथूराम की धुलाई होने लगी। "मैं क्या कहूँ आप ही कहिये?" नाथू बोलाचोरों ने उसे कहा," तुम कहो ; लाला धधा ..लाला धधा।"
नाथू चलता गया, "लाला धधा ...लाला धधा।" घर पहुँच कर वो बोला, "लाला धधा ..लाला धधा।" पत्नी को कुछ भी नहीं समझ में आयापत्नी बोली,"क्या बोल रहे हैं आप?" "लाला धधा ... बनाओ।" पत्नी को क्या पता क्या बनाने को बोल रहे हैंबहुत देर तक बहस चलती रहीखीझ कर नाथूराम अपनी पत्नी की पिटाई करने लगाखूब मारा ...खूब मारा मार मार के बुरा हाल कर दिया
नाथूराम की माता बोलीं, "इतना क्यों मार रहे हो? मार मार के क्या खिचड़ी बना दोगे पत्नी का।" "हाँ यही तो बनाने के लिए कह रहा था," नाथू बोला
तो ये था किस्सा खिचड़ी कातो कृपया भुल्लकर मत बने पत्नी की पिटाई से बचेंधन्य हो खिचड़ी महाराज की

संदीप कुमार कर्ण (पंकज)
+९१-९८१४१-५९१४१ और +९१-९५६९७-११३०६
+--९३५६७-८७९२८