SANDEEP KUMAR (PANKAJ) FROM LUDHIANA.
Friday, January 29, 2010
तुमसा नहीं कोई
{तुमसा नहीं कोई}
जहाँ में तुमसा नहीं कोई,
आकाश में तुम हो खोई।
रहगुजर रहा कोई बनके,
किसके खाबों में हो खोई?
होंठों पर सिर्फ नाम तेरा,
याद में सारी रात तूं रोई।
जिस्म से जिस्म टकरा गया,
फासला रहा नहीं बीच कोई।
लव रहें सदा खामोश,
धड़कन की जुबान भी सोई।
जिस कदर हैं इंतजार तेरा,
क्या रहा तुझे भी वोही?
बीता हुआ कल ना बनो,
सूर्य की पहली किरण होई।
तारीफ नहीं ये हकीकत हैं,
"पंकज" के जज्बात तोही।
तुम सांसों में ऐसे बसे,
इष्ट बने ज्यों कोई।
संदीप कुमार (पंकज)
Thursday, January 21, 2010
"गीत"
"गीत"
१.कितना आसान हैं, दिल का लगाना।बिना बात मुश्किल बड़ा मुस्काना।
लबों की शिकायत बढीं जा रहीं हो।
धड़कन से भी काहे नज़रें चुराना।
बिना......
२.आवाज दिया किसने प्यार को।
हम मिटे नहीं दीदार-ए-यार को।
अधर से मिलाकर अधर खिले हैं।
आदत नहीं लगाना गले हार को।
बहुत खूब आता हैं, ये दामन छुड़ाना।
बिना.........
३.काँटों में बीता हुआ मेरा जीवन।
पत्थर की राहों सा चुभता मेरा मन।
धुल को धुल समझ भूला दूं।
अगर सुलझे उत्तर खिले मेरा तन मन।
आपका अंदाज़ ऐसा की पलकें झूकाना।
बिना......
४.बड़ा हैरान हुआ देख "पंकज"।
कैसे हुआ ये सोचे देख "पंकज"।
तनिक बात पे कुछ बिगड़ने ना पाए।
कितना घर ख्याल देखें है "पंकज"।
दिलों को दिलों के है नजदीक लाना।
बिना बात.......
संदीप कुमार (पंकज)
लुधिआना।
Thursday, January 14, 2010
Khichdi
{खिचड़ी}
किस्सा बहुत पुराना हैं. एक बार की बात हैं। नाथूराम नाम का एक आदमी एक बार अपने ससुराल गया। पहुँचने पर रात हो चुके होने के कारण सासु माँ परेशान हो गयी थीं, जमाई राजा आये हैं तिस पर रात गहरा गयी हैं, अब क्या बनाऊ जो झटपट तैयार हो जाये। सासु माँ ने जल्दी से खिचड़ी बनने को रख दी बिच में आलू भी डाल दिए। जल्दी ही सासु माँ ने परोस दिया। नाथूराम को खिचड़ी बहुत पसंद आई। उसने सासु माँ से पूछा, "माँ ये क्या था जो इतना स्वादिष्ट था, पहली बार इसे खाया हैं इसे क्या कहते हैं।" सासु माँ बोली, "इसे खिचड़ी कहते हैं।" "पर आपकी बेटी ने तो कभी नहीं बनाया इसे", नाथू बोला। सासु माँ बोली, "इस बार बना देगी बस उसे कहना की खिचड़ी बना दो।" रात को नाथू राम सो गया।
सुबह को उठा मुंह हाथ धो कर घर वापस जाने को विदा हुआ तो उसने फिर से अपनी सास से पूछ लिया की रात में क्या बना था। माँ ने फिर से कहा की रात में खिचड़ी बनी थी। नाथूराम थोडा सा भुल्लकर किस्म का व्यक्ति था। वो सोचा की घर दूर हैं तो तब तक मैं भूल जाऊंगा। इस लिए उसने रटते हुए जाने का फैसला किया। नाथूराम जा रहा हैं ये कहता हुआ। "खिचड़ी...खिचड़ी.....खिचड़ी......खिचड़ी....खिचड़ी.....खिचड़ी।"
कुछ दूर जाकर उसे ठोकर लगी नाथू गिर पड़ा। उठा और फिर से बोलते हुए चला जाने लगा। पर अब उसके उच्चारण में फर्क आ गया था। अब वो खिचड़ी की जगह खाचाड़ी खाचाड़ी बोल रहा था। थोड़ी दूर पर साधुओं की एक टोली जा रही थी। नाथू अपने धुन में खाचाड़ी..... खाचाड़ी करता जा रहा था। साधुओं ने उसे पकड़ लिया और लगे मार पिट करने। वो बोले की सुबह सुबह हमारे सामने गाली बक रहा हैं। नाथूराम बोला, "आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं।" साधुओं ने कहा, "तुम कहो उड़ चिड़ी... उड़ चिड़ी।"
नाथू उड़ चिड़ी ....... उड़ चिड़ी करता जा रहा था। एक जगह बहेलिये पंछियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाए हुए थे। उसे उड़ चिड़ी बोलते सु उसे पकड़ लिया और खूब धुलाई की, " हम यहाँ सुबह से जाल बिछाए बैठे हैं और ये ऐसी बात बोल रहा हैं।" नाथू बोला," आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं?" "तुम कहो आते जाओ और फंसते जाओ," बहेलिये बोले।
नाथू आते जाओ फंसते जाओ ....... आते जाओ फंसते जाओ, बोलता जा रहा था। रात हो गयी थी। एक जगह कुछ चोर चोरी के इरादे से निकले थे। उनके नजदीक जाकर भी नाथू यही बोल रहा था की आते जाओ फंसते जाओ। चोरों ने उसे पकड़ लिया और फिर से नाथूराम की धुलाई होने लगी। "मैं क्या कहूँ आप ही कहिये?" नाथू बोला। चोरों ने उसे कहा," तुम कहो ; लाला धधा ..लाला धधा।"
नाथू चलता गया, "लाला धधा ...लाला धधा।" घर पहुँच कर वो बोला, "लाला धधा ..लाला धधा।" पत्नी को कुछ भी नहीं समझ में आया। पत्नी बोली,"क्या बोल रहे हैं आप?" "लाला धधा ... बनाओ।" पत्नी को क्या पता क्या बनाने को बोल रहे हैं। बहुत देर तक बहस चलती रही। खीझ कर नाथूराम अपनी पत्नी की पिटाई करने लगा। खूब मारा ...खूब मारा मार मार के बुरा हाल कर दिया।
नाथूराम की माता बोलीं, "इतना क्यों मार रहे हो? मार मार के क्या खिचड़ी बना दोगे पत्नी का।" "हाँ यही तो बनाने के लिए कह रहा था," नाथू बोला।
तो ये था किस्सा खिचड़ी का। तो कृपया भुल्लकर मत बने पत्नी की पिटाई से बचें। धन्य हो खिचड़ी महाराज की।
संदीप कुमार कर्ण (पंकज)
+९१-९८१४१-५९१४१ और +९१-९५६९७-११३०६
+-१-९३५६७-८७९२८
किस्सा बहुत पुराना हैं. एक बार की बात हैं। नाथूराम नाम का एक आदमी एक बार अपने ससुराल गया। पहुँचने पर रात हो चुके होने के कारण सासु माँ परेशान हो गयी थीं, जमाई राजा आये हैं तिस पर रात गहरा गयी हैं, अब क्या बनाऊ जो झटपट तैयार हो जाये। सासु माँ ने जल्दी से खिचड़ी बनने को रख दी बिच में आलू भी डाल दिए। जल्दी ही सासु माँ ने परोस दिया। नाथूराम को खिचड़ी बहुत पसंद आई। उसने सासु माँ से पूछा, "माँ ये क्या था जो इतना स्वादिष्ट था, पहली बार इसे खाया हैं इसे क्या कहते हैं।" सासु माँ बोली, "इसे खिचड़ी कहते हैं।" "पर आपकी बेटी ने तो कभी नहीं बनाया इसे", नाथू बोला। सासु माँ बोली, "इस बार बना देगी बस उसे कहना की खिचड़ी बना दो।" रात को नाथू राम सो गया।
सुबह को उठा मुंह हाथ धो कर घर वापस जाने को विदा हुआ तो उसने फिर से अपनी सास से पूछ लिया की रात में क्या बना था। माँ ने फिर से कहा की रात में खिचड़ी बनी थी। नाथूराम थोडा सा भुल्लकर किस्म का व्यक्ति था। वो सोचा की घर दूर हैं तो तब तक मैं भूल जाऊंगा। इस लिए उसने रटते हुए जाने का फैसला किया। नाथूराम जा रहा हैं ये कहता हुआ। "खिचड़ी...खिचड़ी.....खिचड़ी......खिचड़ी....खिचड़ी.....खिचड़ी।"
कुछ दूर जाकर उसे ठोकर लगी नाथू गिर पड़ा। उठा और फिर से बोलते हुए चला जाने लगा। पर अब उसके उच्चारण में फर्क आ गया था। अब वो खिचड़ी की जगह खाचाड़ी खाचाड़ी बोल रहा था। थोड़ी दूर पर साधुओं की एक टोली जा रही थी। नाथू अपने धुन में खाचाड़ी..... खाचाड़ी करता जा रहा था। साधुओं ने उसे पकड़ लिया और लगे मार पिट करने। वो बोले की सुबह सुबह हमारे सामने गाली बक रहा हैं। नाथूराम बोला, "आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं।" साधुओं ने कहा, "तुम कहो उड़ चिड़ी... उड़ चिड़ी।"
नाथू उड़ चिड़ी ....... उड़ चिड़ी करता जा रहा था। एक जगह बहेलिये पंछियों को पकड़ने के लिए जाल बिछाए हुए थे। उसे उड़ चिड़ी बोलते सु उसे पकड़ लिया और खूब धुलाई की, " हम यहाँ सुबह से जाल बिछाए बैठे हैं और ये ऐसी बात बोल रहा हैं।" नाथू बोला," आप ही कहिये की मैं क्या बोलूं?" "तुम कहो आते जाओ और फंसते जाओ," बहेलिये बोले।
नाथू आते जाओ फंसते जाओ ....... आते जाओ फंसते जाओ, बोलता जा रहा था। रात हो गयी थी। एक जगह कुछ चोर चोरी के इरादे से निकले थे। उनके नजदीक जाकर भी नाथू यही बोल रहा था की आते जाओ फंसते जाओ। चोरों ने उसे पकड़ लिया और फिर से नाथूराम की धुलाई होने लगी। "मैं क्या कहूँ आप ही कहिये?" नाथू बोला। चोरों ने उसे कहा," तुम कहो ; लाला धधा ..लाला धधा।"
नाथू चलता गया, "लाला धधा ...लाला धधा।" घर पहुँच कर वो बोला, "लाला धधा ..लाला धधा।" पत्नी को कुछ भी नहीं समझ में आया। पत्नी बोली,"क्या बोल रहे हैं आप?" "लाला धधा ... बनाओ।" पत्नी को क्या पता क्या बनाने को बोल रहे हैं। बहुत देर तक बहस चलती रही। खीझ कर नाथूराम अपनी पत्नी की पिटाई करने लगा। खूब मारा ...खूब मारा मार मार के बुरा हाल कर दिया।
नाथूराम की माता बोलीं, "इतना क्यों मार रहे हो? मार मार के क्या खिचड़ी बना दोगे पत्नी का।" "हाँ यही तो बनाने के लिए कह रहा था," नाथू बोला।
तो ये था किस्सा खिचड़ी का। तो कृपया भुल्लकर मत बने पत्नी की पिटाई से बचें। धन्य हो खिचड़ी महाराज की।
संदीप कुमार कर्ण (पंकज)
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