महबूब
खुदा का नूर हो तुम, बड़ी दिलकश अदाएं।
तुम्हें हरदम देतीं रहें, मेरी चाहत दुआएं।
मगरिब से नहीं हो, मशरिक से ही सही।
महफूज़ हो रहो तुम, चाहें जहाँ से आयें हवाएं।
कद्रदान हूँ रूह का, बड़ा अफ़सोस रहेगा।
तुम मिलो ना दिल से, तो राज़ी कैसे राजायें।
वक़्त का दरिया, बहता मिला सागर में।
नासूर सा जख्म दिया, हाल क्या दूं अब दवाएं।
अधरों पे तेरे हंसी, जो खूब भाती हैं।
चुरा लूं इस कदर इसको, देती रहें सदा दुआएं।
अचम्भा किस बात पे "पंकज", नज़र कमजोर तेरी।
गौर से देख, ना आया महबूब ना उसकी अदाएं।
संदीप कुमार (पंकज)
SANDEEP KUMAR (PANKAJ) FROM LUDHIANA.
Thursday, December 17, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment