[सुधार की जरुरत]
शब्दों का ये तालमेल,
बड़ा अजब है खेल.
नियम कठिन पर रोचक,
हिंदी पाठक होता बोधक.
कवि की कविता छूटी,
कलम की नोक भी टूटी.
करूँ यतन सफल बनू,
तीर सा लेखन मैं करूँ.
महानुभावों का साथ हो,
शीश ईश का हाथ हो.
एक दिन "पंकज" सुधरेगा.
कीच से कमल सा निखरेगा.
*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना.
यह कविता तो अच्छी लगी..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'लाल-लाल तुम बन जाओगे...'
कविता बहुत अच्छी सगी। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
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