"विवशता समय की"
जहाँ देखता हूँ,
अनजाना सा डर,
टूट जाती है नींद,
आधी रात में.
ये घुटी घुटी सांस,
दम घोंटू माहौल,
ये चीखते से लोग,
हर बात में.
विषय में लिप्त नेता,
वासना के हेतु नारी,
समय की विवशता,
बैठी हर गात में.
काम नहीं बने,
बिन मुट्ठी गर्म किये,
जनता पड़ी बेसुध,
अधिकारी की लात में.
ईश्वर कहाँ है "पंकज",
देख नज़ारा आर्यव्रत का,
हंस रही है मानवता,
रख हाथ को हाथ में.
संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना.
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