{मानवता की ओर}
समस्त शक्ति धार कर, ईश को पुकार कर.
उठा कदम, बढ़ा कदम, तुं शत्रु का संहार कर.
उठे जो डग, गिरे वो पग, बलिष्ठ बन के वार कर.
अचल धरा, वत्सल धरा, तुं भू को भार न्यार कर.
पौरुष बन, ईशजीत बन, कमल की भांति सार कर.
वेद पढ़, कुरान पढ़, अमल का जामा धार कर.
तुं है पवन, तुं छू गगन, भीतरी शक्ति का संचार कर.
ज़हर की काट, तुं है अकाट, आधार भर को तार कर.
बढे जो तुं, थामे हर रु, विश्वाश मन पुकार कर.
विशेष हो, जग से शेष हो, ज़र्रे को तुं पहाड़ कर.
विषमय जो मन, करता जतन, नर शक्ति को संवार कर.
मिटे जो द्वेष, कटे कलेश, तुं मानवता से प्यार कर.
सन्देश दे, प्यारा देश दे, भारत को सर्व धार कर.
कटे कठिन, आये सुखिन, वक़्त की कसौटी पार कर.
"पंकज" बना, कीच से सना, स्वच्छ पुष्प आर कर.
बीच विषमता के, हे मानव! तुं प्यार का प्रचार कर.
* संदीप कुमार कर्ण (पंकज)
* लुधियाना (पंजाब)
* +९१-९८१४१-५९१४१ और +९१-९५६९७-११३०६.
SANDEEP KUMAR (PANKAJ) FROM LUDHIANA.
Wednesday, February 3, 2010
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