जीवन की डगर
बहुत कठिन डगर है जीवन.
सुन्दर इसका उपवन.
कहीं धुल, कहीं उबाल.
समर तपस्या सा पावन.
विस्मित हो संसार निहारे.
कटिल झाड़ सा ये मधुवन.
क्षुब्द सजल निर्झर निश्चल.
कृत रत बोझिल है ये मन.
विधा के ज्ञान अज्ञान बने.
मृदुता आलोप हुआ जन-जन.
निडरता है छुपी डर भीतर.
कांप रहा हर एक बदन.
अचल से मन का नीर बहे.
सोच रहा क्यों मिला ये जीवन?
सास्वत सत्य पड़ा खतरे में.
मृत्यु रहा पुकार ये मन.
रिक्त हुआ जल से "पंकज".
करे पुकारे,"कहाँ हो भगवन?"
*संदीप कुमार (पंकज)
लुधियाना
+९१-९८१४१-५९१४१
+९१-९३५६७-८७९२८
No comments:
Post a Comment