अपनी लिपि अपनी भाषा
हिंदी के महान और आदरणीय सपूतों ;
मत निकालो अर्थी हिंदी की.
दर्शन का प्रयोग करते हैं पुरातन;
बात करते संस्कारों की.
अहम् का टकराव हो रहा है;
एक एक को दूसरों में कमियां ही दिखाई दी.
लिपि अपनी कितनी पौराणिक भूले;
रोमन, अरबी कितनी प्रसंगिकी.
महक अपने देश की जा रही विदेश तक;
अभिमान करे की हम हैं महान वारिसी.
जीवन पर्यंत जो हम किये अब विचारे;
अपनी लिपि और भाषा को उभारने प्रयत्न की?
भावनाए होती रहे आहत नहीं दुःख इसका;
बस अपनी अपनी बोलती रहे सदा थोथी.
कंटक कारी समय नजदीक आता जा रहा;
अपनी लिपि पे आये संकट की बात की?
"पंकज" समझाए की विचार बाँटिये;
मत भूलिए आप भी संतान और देन हैं इसी भाषा की.
*संदीप कुमार (पंकज)
*लुधियाना.
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